सोमवार, 12 अप्रैल 2010

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा
गुनगुनाएगें तो भी सूर टुट ही जाएगा

तनहाईयों का बांध बन गया है जीवन
सांसो का सूर किसी घड़ी छुट जाएगा

अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब
जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा

बदनामियों के गाँव अब कौन आएगा
क्युँ अपना ही मीत मुझसे रुठ जाएगा

जलती रही है आग मेरे शब्दों में हमेशा
क्युं जलकर वुजुद राख सा बैठ जाएगा

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

खुशबु से वन महकता है

ब्लाग पर पहली बार लिख रहा हुँ, आपका आशीर्वाद चाहता हुँ,

देखता हूँ सूरज रोज चमकता है
किरणों के संग रोज झलकता है.

चमकता है मेरे माथे पर रोज
यूँ ही तिल तिल कर सरकता है

कभी बन जाता है आतंकवादी
नित आग के गोले सा बरसता है

चन्दन वन में भी शीतलता नहीं
सारा वुजूद दावानल सा दहकता है

वन में कुछ तितलियाँ है फूलों पर
जिसकी खुशबु से वन महकता है.

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