मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा
गुनगुनाएगें तो भी सूर टुट ही जाएगा
तनहाईयों का बांध बन गया है जीवन
सांसो का सूर किसी घड़ी छुट जाएगा
अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब
जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा
बदनामियों के गाँव अब कौन आएगा
क्युँ अपना ही मीत मुझसे रुठ जाएगा
जलती रही है आग मेरे शब्दों में हमेशा
क्युं जलकर वुजुद राख सा बैठ जाएगा
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
शनिवार, 10 अप्रैल 2010
खुशबु से वन महकता है
ब्लाग पर पहली बार लिख रहा हुँ, आपका आशीर्वाद चाहता हुँ,
देखता हूँ सूरज रोज चमकता है
किरणों के संग रोज झलकता है.
चमकता है मेरे माथे पर रोज
यूँ ही तिल तिल कर सरकता है
कभी बन जाता है आतंकवादी
नित आग के गोले सा बरसता है
चन्दन वन में भी शीतलता नहीं
सारा वुजूद दावानल सा दहकता है
वन में कुछ तितलियाँ है फूलों पर
जिसकी खुशबु से वन महकता है.
देखता हूँ सूरज रोज चमकता है
किरणों के संग रोज झलकता है.
चमकता है मेरे माथे पर रोज
यूँ ही तिल तिल कर सरकता है
कभी बन जाता है आतंकवादी
नित आग के गोले सा बरसता है
चन्दन वन में भी शीतलता नहीं
सारा वुजूद दावानल सा दहकता है
वन में कुछ तितलियाँ है फूलों पर
जिसकी खुशबु से वन महकता है.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)