मंगलवार, 11 मई 2010

बड़का बि्लागर कौउन-कौनो जानत हो ?

तनिक छुट्टी लिए नौकरिया से। बाबु लोग बहुतै हलाकान करत हैं, एक बुढव साहब है रिटायर मेंट के नजीक मा, ऊ तो बहुत ही पगला गया हैं। बहुतै दिमाग चाटै लागे तो हम भी आज छुट्टी ले लिए तनि पीछा तो छुटै, अबहिं बिलाग पढत जात रहे , देखे का हिंया तो बड़का हलचल मचा है। खदबदाहट तो बहुतै दिन से था। अबहिं मामला कुछ खुल गया। दद्दा जी पूछन लागे कि बड़का बिलागर कौन? हमने भी उनका पुछा कि ईंहा बड़का बिलागर कौन नाही है? सबे तो बड़का बिलागर हैं। पर उड़नतश्तरी के एतना बड़का बिलागर कोऊ नाही। ई तो पूरा बिलाग जगत जानत है।

जौन बात सगरा बिलाग जगत जानत है ई बात का ढिंढोरा पीटे का कौउन जरुरत आन पड़ी। ई बात तो कु्छ जमी नाही।  लगता है बिलाग जगत का अमन चैन चो्राने का कोशिश कर रहे हैं, हफ़्ता 15 दिन ठीक चलता है फ़ेर कोऊ ना कोऊ हरकत हो जाता हैं, के ठहरे पानी में कंकरि्या मार के मौज होइ जाए। ई सब ठीक नही है। अगर आपके पास लिखे का सामगरी  नाही है गंगा मैया का फ़ोटुए बढियां हैं गंगा दरशन करीके आतमा तो त्रिप्त होई जात है। हम खुश होइ जात हैं।

एतना एवन हिन्दी लिखत हैं कि हमार डिकशनरी मा शब्द नाही मिलत। पाणिनी फ़ैल खा गए, एतना बढिया लि्खत-लिखत एतना घटि्या कैसे लिखन लागे? हम तो सोचिया सोचिया के पगलिया गए हैं। दीमाग मा इन्फ़ैक्शन होई गवा, अब का करी? उमर का भी तो असर हो्त है । एक दिमाग से केतना काम लिजिएगा, तनि जोर जियादा पड़ जाता है। दिमाग से तनिक कम काम लिजिए अऊर अच्छा बिलागिंग किजिए। ई नापने-नुपने का काम छोर दिजिए कौन बड़का, कौन छोटका। सबै बिलागर बड़का हैं छोटका कोऊ नाही। सबै जानत हैं।जय गंगा मैया के................
(उद्भोषणा-ये निर्मल हास्य है इसका किसी जिंदा या मुर्दा या इंसान या किसी घटना से कोई संबंध नही है )

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा
गुनगुनाएगें तो भी सूर टुट ही जाएगा

तनहाईयों का बांध बन गया है जीवन
सांसो का सूर किसी घड़ी छुट जाएगा

अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब
जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा

बदनामियों के गाँव अब कौन आएगा
क्युँ अपना ही मीत मुझसे रुठ जाएगा

जलती रही है आग मेरे शब्दों में हमेशा
क्युं जलकर वुजुद राख सा बैठ जाएगा

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

खुशबु से वन महकता है

ब्लाग पर पहली बार लिख रहा हुँ, आपका आशीर्वाद चाहता हुँ,

देखता हूँ सूरज रोज चमकता है
किरणों के संग रोज झलकता है.

चमकता है मेरे माथे पर रोज
यूँ ही तिल तिल कर सरकता है

कभी बन जाता है आतंकवादी
नित आग के गोले सा बरसता है

चन्दन वन में भी शीतलता नहीं
सारा वुजूद दावानल सा दहकता है

वन में कुछ तितलियाँ है फूलों पर
जिसकी खुशबु से वन महकता है.

टेस्ट पोस्ट

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