सोमवार, 12 अप्रैल 2010

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा

मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा
गुनगुनाएगें तो भी सूर टुट ही जाएगा

तनहाईयों का बांध बन गया है जीवन
सांसो का सूर किसी घड़ी छुट जाएगा

अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब
जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा

बदनामियों के गाँव अब कौन आएगा
क्युँ अपना ही मीत मुझसे रुठ जाएगा

जलती रही है आग मेरे शब्दों में हमेशा
क्युं जलकर वुजुद राख सा बैठ जाएगा

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह घटोत्कच...लिखते बढ़िया हो, भले ठेठवार हो. (मुड पेलवा ):)

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  2. शब्दों की आग यूं ही जलती रहे. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब
    जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा
    " बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति.."
    regards

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  4. मै आंसुओं का गीत मुझे कौन गाएगा
    गुनगुनाएगें तो भी सूर टुट ही जाएगा
    ..........maarmik, dardanaak, sundar rachna.ye padhakar to aansuo kaa geet gaane ko jee karane lagaa.

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  5. तनहाईयों का बांध बन गया है जीवन
    सांसो का सूर किसी घड़ी छुट जाएगा
    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!

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  6. ...बहुत खूब ... आज फ़िर "मैन आफ़ द मैच" ... बधाई!!

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  7. ब्लॉग-जगत मे स्वागत..आपका प्रोफ़ाइल बढ़िया लगा!

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  8. अर्थों की प्यास और शब्दों का इंकलाब..जाने किसी दिन झरने सा फ़ुट जाएगा.. bahut khoob bhai.

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लौटाउंगा आपको उम्मीद से ज्यादा
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